Micro-Teaching

सूक्ष्म शिक्षण

यहाँ हम सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching), सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ, परिभाषा, अवधारणाएं, विशेषताएं, प्रक्रिया, लाभ, सीमाएं, सूक्ष्म शिक्षण का भारतीय प्रतिमान, पारम्परिक और सूक्ष्म-शिक्षण में अन्तर और सूक्ष्म शिक्षण चक्र के बारे में क्रमशः जानेंगे।

सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) एक प्रशिक्षण अवधारणा है जिसे शिक्षकों के पेशेवर विकास के लिए पूर्व-सेवाकालीन और सेवाकालीन चरणों में लागू किया गया है। माइक्रो टीचिंग शिक्षकों को अनुदेशन के लिए एक अभ्यास सेटिंग प्रदान करता है जिसमें कक्षा की सामान्य जटिलताएँ कम की जाती हैं। इसमें शिक्षक को अपने प्रदर्शन के बारे में अच्छी प्रतिपुष्टि मिलती है।

शिक्षण किसे कहते हैं?


सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ (Meaning of Micro-Teaching)


इसे सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस शिक्षण प्रक्रिया में सूक्ष्मता से ध्यान दिया जाता है, जब शिक्षक सिखा रहा हो। शिक्षण पद्धति में व्याप्त दोषों के तहत सभी शिक्षकों को एक रचनात्मक प्रतिपुष्टि देने के लिए पर्यवेक्षकों के परिप्रेक्ष्य में लाया जाता है। यह कक्षा की स्थिति में पढ़ाने के लिए सीखने की कुछ जटिलताओं को समाप्त करता है जैसे कि व्याख्यान की लंबाई का दबाव,  विषय का क्षेत्र और सामग्री को अवगत कराना, अपेक्षाकृत लंबे समय तक पढ़ाने की आवश्यकता और छात्रों की बड़ी संख्या का सामना करने की आवश्यकता, जिनमें से कुछ स्वभाव से उदण्ड भी हैं। सूक्ष्म शिक्षण एक रचनात्मक प्रतिपुष्टि प्राप्त करने के अवसर के साथ कुशल पर्यवेक्षण भी प्रदान करता है। अनंतकृष्णन के अनुसार- कक्षा शिक्षण पूल के गहरे छोर पर तैरना सीखना है, जबकि सूक्ष्म शिक्षण उथले और कम जोखिम वाले किनारे में अभ्यास करने का अवसर है।


शिक्षा मनोविज्ञान


शिक्षा क्या है? । शिक्षा का अर्थ । शिक्षा की परिभाषा । विश्लेषण

सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) एक शिक्षण पद्धति है जहां शिक्षक प्रत्येक शिक्षण सत्र के बाद पाठ का एक वीडियो टेप की समीक्षा करता है, ताकि बारीकी से विश्लेषण  किया जा सके। इससे शिक्षकों को पता चलता है कि क्या काम किया है, कौन से पक्ष  कमजोर हो गए हैं, और उनकी शिक्षण तकनीक को बढ़ाने के लिए क्या किया जाना चाहिए। ड्वाइट एलन द्वारा स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में 1960 के दशक के मध्य में आविष्कार किया गया था, अब कई दशकों से सफलता के साथ शिक्षकों को प्राप्त करने और नए कौशल को हासिल करने में मदद के लिए सूक्ष्म शिक्षण का उपयोग किया जा चुका है।



मूल प्रक्रिया में, एक शिक्षक को शिक्षार्थियों के एक छोटे समूह के लिए एक संक्षिप्त पाठ, सामान्यतया 20 मिनट का, तैयार करने के लिए कहा जाएगा जो उसके अपने छात्र नहीं हो सकते हैं। इसकी वीडियोग्राफी होगी। पाठ के बाद, शिक्षक, शिक्षण सहकर्मी, एक मास्टर शिक्षक और छात्र एक साथ वीडियोटेप देखते हैं और वीडियो देखकर और प्रदान किए गए सहकर्मियों और छात्रों से टिप्पणियां प्राप्त करते हैं।



सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) का विकास ड्वाइट डब्ल्यू ऐलन और इनके सहयोगी  रॉबर्ट बुश और किम रोमनी ने 1963 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय  में शिक्षण व्यवहारों के विकास के लिये किया। इस आविष्कार के बाद से विश्वभर में इसका उपयोग किया जा रहा है। इसका उद्देश्य प्रत्येक छात्र अध्यापक को सूक्ष्म शिक्षण द्वारा शिक्षण कौशलों का प्रशिक्षण, किसी भी शिक्षण विषय में सरल और एकल अवधारणा पाठ को विकसित करने का तरीका सीखने के साथ-साथ शिक्षण कौशल के सुरक्षित अभ्यास का अवसर प्रदान करना है। सूक्ष्म शिक्षण कोई शिक्षण विधि नहीं है। यह शिक्षकों को शिक्षण की सामग्री और विधियों दोनों को बेहतर बनाने में मदद करता है और विशिष्ट शिक्षण कौशल विकसित करता है जैसे कि पाठों को अधिक रोचक प्रभावी सुदृढीकरण तकनीकों को बनाने के लिए उदाहरणों और सरल कलाकृतियों के उपयोग पर सवाल उठाना और प्रभावी ढंग से परिचय और समापन करना। इसी कारणवश यह अध्यापक-प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल है।


Micro-teaching


नियमित शिक्षण प्रक्रिया की जटिलताओं को आसान बनाने के उद्देश्य से एक प्रशिक्षण प्रक्रिया है। एक सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) प्रक्रिया में, प्रशिक्षु एक शिक्षण की स्थिति को कम करने में लगे हुए हैं। वर्ग आकार के मामले में इसे छोटा किया जाता है, क्योंकि प्रशिक्षु चार से छह विद्यार्थियों का एक छोटे से समूह को सिखा रहा है। पाठ को कक्षा के समय की लंबाई में घटाया जाता है और इसे पाँच या दस मिनट तक घटाया जाता है। शिक्षण कार्यों के मामले में भी इसे नीचे रखा गया है।

जे सी अग्रवाल के अनुसार- माइक्रो टीचिंग एक प्रशिक्षण तकनीक है, जिसे पाठ की चयनित अवधारणा पर 5 से 10 मिनट की छोटी अवधि के लिए 5 से 10 विद्यार्थियों के एक छोटे समूह के साथ शिक्षक प्रशिक्षु अभ्यास के बाद से 'माइक्रो' कहते हैं और एकल पर ध्यान केंद्रित करते हैं। छात्र शिक्षकों के लिए शिक्षण कौशल प्रतिभागी के अवलोकन कौशल, मॉडल शिक्षण, अनुशासन तकनीक और सामग्री शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।


■सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) की परिभाषाएं-


ए. राम बाबू के अनुसार- "माइक्रोटीचिंग एक विकल्प नहीं है, लेकिन शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम का पूरक है।"


बी. एम. शोर के अनुसार- "सूक्ष्म शिक्षण कम समय, कम छात्रों तथा कम शिक्षण क्रियाओं वाली प्रविधि हैं।" 


इसी प्रकार डी. ऐलन और के रायन अनुसार- "सूक्ष्म शिक्षण सेवारत और सेवा से पूर्व के स्तरों में शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिये प्रयोग किया जाने वाला एक प्रशिक्षण से जुड़ा हुआ अवधारणा है। सूक्ष्म-शिक्षण शिक्षकों को शिक्षक के अभ्यास के लिये उस तरह की स्थिति प्रदान करता है जो कक्षा की सामान्य जटिलताओं को कम करता है और शिक्षक को अपने व्यवहार के लिये पर्याप्त पृष्ठपोषण मिलता है।"


डी. ऐलन  ने भी सूक्ष्म शिक्षण को संक्षिप्त रूप से परिभाषित किया है- "सूक्ष्म-शिक्षण को लघु क्रियाओं में बांटना होता है।" 


डी. ऐलन और ईव कहते हैं कि  "सूक्ष्म शिक्षण नियंत्रित अभ्यास की एक प्रणाली है जो निर्दिष्ट शिक्षण व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करना और नियंत्रित परिस्थितियों में शिक्षण का अभ्यास करना संभव बनाता है।"


बी. के. पासी के अनुसार, "यह एक प्रशिक्षण की तकनीकी है जिसकी छात्र-अध्यापक को विशिष्ट अध्यापन कौशलों के प्रयोग की जानकारी के लिये आवश्यकता है जिससे यह कम समय में तथा कम विद्यार्थियों में समझ आ सके।"


आर. एन. बुश के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण अध्यापक शिक्षा की एक प्रविधि है जो अध्यापक को स्पष्ट रूप से परिभाषित शिक्षण कौशलों को वास्तविक विद्यार्थियों के एक छोटे से समूह के साथ 5 से 10 मिनटों के शिक्षण की नियोजित श्रृंखला के लिये ध्यानपूर्वक तैयार किये गये पाठों में प्रयोग करने का अवसर प्रदान करती है तथा वीडियो टेप पर परिणामों के निरीक्षण के अवसर प्रदान करती है।" 


उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर तथा अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा दृष्टिकोण के अनुसार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) की प्रविधि किसी परिस्थिति में उस प्रकार का शिक्षण अभ्यास प्रदान करती है जिसमें विद्यार्थियों की संख्या और पाठ की लम्बाई में कमी द्वारा तथा किसी विशिष्ट शिक्षण-कौशल पर केन्द्रित होकर कक्षा-कक्ष की जटिलताओं को कम किया जा सकता है। सूक्ष्म शिक्षण कार्यक्रम 15 से 20 मिनट तक चलता है और शिक्षण-कौशलों पर आधारित होता है।


शिक्षा की भूमिका


■सूक्ष्म शिक्षण का अवधारणाएं (Assumptions of Micro Teaching)


Micro-teaching

सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) प्रविधि निम्नलिखित अवधारणाओं पर आधारित है:

(i) सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है।

(ii) यह सामान्य कक्षा-कक्ष शिक्षण, कक्षा का आकार, विषय सामग्री, समय इत्यादि की जटिलताएं कम करता है। 

(iii) यह प्रशिक्षण केन्द्रित होता है।

(iv) यह प्रतिपुष्टि के प्रयोग द्वारा नियंत्रित अभ्यास को बढ़ाता है। 

(v) सूक्ष्म शिक्षण पूर्ण रूप से व्यक्तिगत प्रशिक्षण कार्यक्रम है।

(vi) शिक्षण में प्रतिपुष्टि आयाम के लिए सूक्ष्म शिक्षण परिणामों के सामान्य ज्ञान का बहुत अधिक विस्तार करता है। शिक्षक प्रशिक्षु अपने प्रदर्शन में अपनी अधिकतम अंतर्दृष्टि की आलोचना करता है, प्रतिपुष्टि के कई स्रोतों को उसके निपटान में डाल दिया जाता है। वह पर्यवेक्षक या सहकर्मी के मार्गदर्शन के साथ अपने लक्ष्य के प्रकाश में अपने स्वयं के प्रदर्शन के पहलू का विश्लेषण करता है।

औपचारिक शिक्षा


शिक्षा का उद्देश्य


■सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं (Characteristics of Micro-Teaching)


(i) यह वास्तविक शिक्षण है, लेकिन यह शिक्षण प्रारंभ करने के विकास पर केंद्रित है।

(ii) यह शिक्षक प्रशिक्षण के क्षेत्र में नवाचार है

(iii) यह प्रशिक्षण तकनीक है शिक्षण तकनीक नहीं है।

(iv) यह प्रशिक्षु शिक्षकों के लिए प्रयाप्त तात्कालिक प्रतिपुष्टि प्रदान करता है। पाठ के तुरन्त पश्चात ही छात्र-अध्यापक को पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है।

(v) यह प्रभावी शिक्षक तैयार करता है।

(vi) शिक्षण और शिक्षण की परिस्थितियों पर इसमें अधिक प्रभावशाली नियंत्रण रखा जा सकता है।

(vii) छात्र अध्यापक किसी एक कौशल का बार-बार अभ्यास कर सकते हैं।

(viii) वीडियो टेप और सीसीटीवी से निरीक्षण बहुत ही उद्देश्यपूर्ण होता है।

(ix) यह प्रशिक्षण का विश्लेषणात्मक उपागम है।

(x) इसमें कक्षा को 5 से 10 प्रशिक्षुओं तक सीमित किया जाता है। शिक्षण के अवधि को 5 से 10 मिनट तक कम किया जाता है। विषय-वस्तु के आकार को भी छोटा रखा जाता है। यह शिक्षण कौशल को भी कम करता है।


■सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:


●कौशल को परिभाषित करना: शिक्षण का ज्ञान और जागरूकता प्रदान करना। शिक्षण व्यवहार के संदर्भ में एक विशेष कौशल प्रशिक्षुओं को परिभाषित किया गया है।


●कौशल का प्रदर्शन: विशेषज्ञों द्वारा प्रदर्शित विशिष्ट कौशल को प्रशिक्षुओं को वीडियो-टेप या फिल्म के माध्यम से दिखाया जाता है।


●पाठ की योजना बनाना: अपने पर्यवेक्षकों की मदद से, छात्र शिक्षक एक लघु (सूक्ष्म) पाठ की योजना बनाता है जिसमें वह अभ्यास कर सकता है।


●पाठ पढ़ाना: प्रशिक्षु-शिक्षक विद्यार्थियों के एक छोटे समूह (यानी, 5 से 10 विद्यार्थियों) को पाठ पढ़ाते हैं। शिक्षण कार्य को पर्यवेक्षकों या सहपाठियों द्वारा निरीक्षण किया जाता है।


●चर्चा- प्रशिक्षु को सुझाये गए सुधार की चर्चा के बाद पाठ को पढ़ाना होता है। वीडियो-टेप या ऑडियो-टेप को प्रशिक्षु को अपनी शिक्षण गतिविधियों का निरीक्षण करने के लिए प्रदर्शित किया जा सकता है। अपने स्वयं के शिक्षण प्रदर्शन के बारे में जागरूकता प्रशिक्षु-शिक्षण को सुदृढ़ता प्रदान करती है।


●पुन: योजना बनाना: प्रशिक्षु-शिक्षक चर्चा और सुझावों के प्रकाश में छोटे कौशल का प्रभावी ढंग से अभ्यास करने के लिए पुनः पाठ योजना बनाते हैं।



■सूक्ष्म शिक्षण के लाभ (Advantages of Micro Teaching)


सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) की समस्त प्रक्रिया तथा इसके अवधारणा को जान लेने के पश्चात् इसके निम्नलिखित लाभ हैं:

1. यह विशिष्ट कौशल के प्रशिक्षण में सहायक है।

2. यह प्रभावशाली प्रतिपुष्टि का साधन है।

3. यह सेवापूर्व या सेवाकालीन प्रशिक्षण में उपयोगी है।

4. यह व्यक्तिगत प्रशिक्षण की विधि है।

5. यह अध्यापक के व्यवहार में संशोधन में सहायक है। 6. यह अन्तर्दृष्टि, जागरूकता और नियन्त्रण में सहायक है।

7. यह प्रशिक्षु शिक्षक के समय तथा शक्ति की बचत करती है। 

8. यह सतत प्रशिक्षण प्रदान करके शिक्षण कला में निखार लाती है।

9. यह स्वः मूल्यांकन करने में सहायक है।

10. इसका अनुसंधान में भी प्रयोग किया जा सकता है।

11. विषयवस्तु छोटी-छोटी इकाइयों में प्रस्तुत किया जाता है।


■सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएं (Limitations of Micro Teaching) 


(i) प्रशिक्षण महाविद्यालयों में सूक्ष्म-शिक्षण (Micro Teaching) प्रयोगशाला का निर्माण बहुत महंगा होता है।

(ii) सूक्ष्म शिक्षण में प्रयोग करने के लिये विडियो टेपरिकार्डर तथा अन्य उपकरणों की आवश्यकता होती

है तभी यह प्रणाली सफल हो सकती है।

(iii) सूक्ष्म शिक्षण स्वयं में पर्याप्त विधि नहीं है। इस विधि का प्रयोग अन्य विधियों के साथ करने से यह अधिक प्रभावशाली होती है।

(iv) इस विधि में पर्याप्त समय की जरूरत होती है।

(v) अध्यापकों को इस विधि का प्रशिक्षण भी आवश्यक होता है।

(vi) इसमें बड़े विषय सामग्री का शिक्षण संभव नहीं है।



■ सूक्ष्म शिक्षण का भारतीय प्रतिमान 


किसी भी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) अपना बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। विदेशों में विकसित किए गए सूक्ष्म शिक्षण प्रतिमान को भारतीय सन्दर्भ में वैसा ही नहीं लिया गया। इसमें भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप कुछ परिवर्तन आवश्यकतानुसार  किए गए हैं। भारतीय सूक्ष्म शिक्षण प्रतिमान के विकास का मुख्य श्रेय बी. के. पासी और प्रो. आर. सी. दास को जाता है। डॉ. पासी, डॉ. सिंह तथा डॉ. जंगीरा द्वारा तैयार की गई शिक्षक सामग्री का प्रयोग प्रशिक्षु-शिक्षक एवं शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु शोध एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में किया गया और विकास की इस प्रक्रिया से गुजर कर सूक्ष्म शिक्षण के भारतीय प्रतिमान का विकास हुआ।


भारत एक गरीब देश होने के कारण, अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा अन्य देशों की तरह महंगा शिक्षण सामग्री का प्रयोग नहीं कर सकता था, इसलिए शिक्षण कौशल के प्रदर्शन के लिए लिखित सामग्री, व्याख्यानों, प्रदर्शनी तथा वाद-विवाद इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। विदेशों में सूक्ष्म पाठ शिक्षण के अवलोकन एवं मूल्यांकन के लिए ऑडियो-वीडियो, टेप या CCTV का प्रयोग किया जाता है लेकिन भारत में इसके स्थान पर अध्यापक तथा सहपाठी छात्र, पर्यवेक्षक निरीक्षण तथा मूल्यांकन करते हैं तथा प्रतिपुष्टि प्रदान करते हैं। विदेशों में स्कूल के विद्यार्थी सूक्ष्म पाठ में विद्यार्थी होते हैं लेकिन भारत में सहपाठी छात्र ही विद्यार्थी का अभिनय करते हैं। कम से कम स्थान, साधन तथा सामग्री से सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) भारत में सम्पन्न किया जा सकता है। 


भारतीय प्रतिमान में सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Micro Teaching cycle) का समय निम्न प्रकार से होता है:-


शिक्षण (कुल 6 मिनट) > प्रतिपुष्टि (कुल 6 मिनट) > पुनः योजना(कुल 12 मिनट) > पुनः शिक्षण (कुल 6 मिनट) > पुनः प्रतिपुष्टि (कुल 6 मिनट) =36 मिनट।


सूक्ष्म शिक्षण (Micro teaching) का यह चक्र तब तक चलता है जब तक की प्रशिक्षु-शिक्षक या शिक्षक कुशलता प्राप्त न कर लें। 


इसमें विद्यार्थियों की संख्या भी बढ़ा दी गई है तथा विषयवस्तु भी अधिक रखी गई है। इस प्रकार सूक्ष्म शिक्षण प्रतिमान का प्रयोग काफी विश्वविद्यालयों के विभागों तथा प्रशिक्षण महाविद्यालयों में किया जा रहा है।


■पारम्परिक और सूक्ष्म-शिक्षण (Micro teaching) में अन्तर


(i) पारम्परिक शिक्षण में उद्देश्यों का व्यावहारिक शब्दावली में विशिष्टीकरण नहीं किया जाता। सूक्ष्म शिक्षण में ऐसा किया जाता है।

 

(ii) पारम्परिक शिक्षण विधि में शिक्षण की अवधि अधिक होती है लेकिन सूक्ष्म शिक्षण में कक्षा 15-20 मिनट की ही होती है।


(iii) पारम्परिक शिक्षण में कक्षा में 50-100 तक विद्यार्थी हो सकते हैं जबकि सूक्ष्म शिक्षण में इनकी संख्या 5-10 विद्यार्थी होती है।


(iv) पारम्परिक शिक्षण में प्रतिपुष्टि तत्काल प्रदान करने की व्यवस्था नहीं होती लेकिन सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) में प्रतिपुष्टि तत्काल प्रदान की जाती है।


(v) पारम्परिक शिक्षण के दौरान अन्तःक्रिया का अध्ययन वस्तुनिष्ठतापूर्वक नहीं किया जा सकता लेकिन सूक्ष्म शिक्षण में ऐसा संभव है। 


(vi) पारम्परिक शिक्षण में प्रेक्षक की भूमिका बहुत ही स्पष्ट होती है लेकिन सूक्ष्म शिक्षण में प्रेषक की भूमिका विशिष्ट होती है।


(vii) पारम्परिक शिक्षण प्रक्रिया बहुत जटिल होती है लेकिन सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) की प्रक्रिया बहुत ही सरल मानी जाती है।


Sukshma-shikshan

इस प्रकार सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) प्रशिक्षु-शिक्षकों एवं शिक्षकों में कौशल विकास को उद्दीप्त करता है और गुणवत्ता लाता है।


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