शिक्षण
इस लेख में शिक्षण से सम्बंधित निम्नांकित बिंदुओं यथा शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा, शिक्षण की प्रकृति और विशेषताएँ, 'शिक्षण, अधिगम और अनुदेशन में अंतर', शिक्षण और अधिगम का सम्बन्ध, 'शिक्षण और अधिगम में अंतर' के बारे में जानेंगे।
शिक्षण शब्द का अर्थ समझने के लिए विभिन्न शिक्षा-शास्त्रियों ने अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं। इसी उद्देश्य को लेकर शिक्षा के विभिन्न प्रतिरूपों का जन्म हुआ। इन उपलब्धियों के फलस्वरूप शिक्षण-प्रत्यय अधिक जटिल हो गया है। 'शिक्षण' शब्द की विस्तृत व्याख्या के लिए यह आवश्यक है कि इसके सभी पक्षों यथा अर्थ, प्रकृति और इसकी विशेषताओं का समझा जाए। शिक्षण के अर्थ को समझने के लिए इसका अधिगम के साथ संबंध जानना अति आवश्यक है।
शिक्षा क्या है? । शिक्षा का अर्थ । शिक्षा की परिभाषा । विश्लेषण
शिक्षण के अर्थ और परिभाषाएं
जोहन बी. हफ. और जेम्स के. डंकन ने शिक्षण को इस प्रकार परिभाषित किया है-'शिक्षण चार चरणों वाली एक क्रिया है जिसमें पाठ्यक्रम-योजना चरण, निर्देशन-चरण, मापन-चरण, और मूल्य-चरण' शामिल हैं।' यह परिभाषा संगठनात्मक दृष्टिकोण को उपस्थित करती है जिससे हम शिक्षण प्रक्रिया का वर्णन एवं उसका विश्लेषण कर सकते हैं।
जैक्सन के अनुसार, "शिक्षण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच आमने-सामने का सामना है, जिसमें एक अध्यापक दूसरे विद्यार्थियों (अधिगमकर्ता) में खास बदलाव लाने को इच्छा करता है।"
एच.सी मोरिसन के अनुसार, "शिक्षण एक परिपक्व व्यक्ति और कम परिपक्व व्यक्तियों के बीच आत्मीय या घनिष्ठ सम्पर्क है जिसके द्वारा कम परिपक्व को शिक्षा के क्षेत्र में और अग्रसर किया जाता है।"
एन. एल. गेज के लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के अनुसार शिक्षण की परिभाषा इस प्रकार है, "पारस्परिक व्यक्तित्व का प्रभाव जो दूसरे के व्यवहार संभाव्य या क्षमताओं को बदलने के लिए केन्द्रित हो।"
जॉन होकर के अनुसार, “शिक्षण उन परिस्थितियों का प्रबन्ध और परिचालन है जिनमें कुछ अधुरापन और बाधायें होती हैं और व्यक्ति उन्हें पूरा करने या उन पर काबू पाने का प्रयत्न करता है और इसके फलस्वरूप कुछ सीखता है।"
बी. ओ. स्मिथ के अनुसार, "शिक्षण अधिगम के लिए की जाने वाली क्रियाओं की एक प्रणाली है।"
क्लार्क ने शिक्षण को इस तरह परिभाषित किया है, "शिक्षण में अभिप्राय उन क्रियाओं से है जिनकी संरचना और परिचालन विद्यार्थियों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए किया जाता है।"
नई शिक्षा नीति 2020 हिंदी pdf download
शिक्षण की प्रकृति और विशेषताएँ
शिक्षण विशेष परिस्थितियों के अंतर्गत होता है। शिक्षक इन परिस्थितियों के अंतर्गत विशेष प्रकार का व्यवहार करता है और यह अपेक्षा करता है कि अधिगमकर्ता कुछ समझ सके और स्मरण कर सके। वह ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखता है और इस बात पर बल देता है अधिगमकर्ता उसे समझे और अपने नोटबुक में लिखे आदि। संक्षेप में, जब अध्यापक ये सारी क्रियाएं कर रहा होता है, तो इसका अर्थ है कि वह शिक्षण कार्य कर रहा है।
उपरोक्त विभिन्न परिभाषाओं के विश्लेषण से शिक्षण की प्रकृति का पता चलता है। शिक्षण की प्रकृति निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षण एक सामाजिक क्रिया है।
2. यह एक विकास की प्रक्रिया है।
3. यह एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है।
4. यह त्रिध्रुवी है।
5. यह निर्देशन की प्रक्रिया है।
6.यह औपचारिक और अनौपचारिक क्रिया होती है।
7. यह आमने-सामने होने वाली प्रक्रिया है।
8. यह अधिगम से संबंधित है।
9. यह कला और विज्ञान है।
10. यह भाषायी प्रक्रिया है।
11.यह अधिगम को प्रोत्साहित करता है।
12. यह व्यवहार को स्वरूप प्रदान करता है।
13. यह स्मृति-स्तर से विमर्शपूर्ण स्तर पर होता है।
14. यह क्रियाओं की प्रणाली है जो अधिगम उत्पन्न करती है।
15. यह एक अन्तःक्रिया है।
16. यह क्रियाओं की एक प्रणाली है।
17. यह एक उपचार विधि है।
18. यह प्रेक्षण योग्य, मापने योग्य और सुधार योग्य कार्य है।
शिक्षण, अधिगम और अनुदेशन में अंतर
शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रियाओं एवं अर्थ को जानने के लिए शिक्षण, अधिगम और अनुदेशन में अंतर पहचानना अति आवश्यक है। शिक्षण वह प्रक्रिया है जो अधिगमकर्ता को कुछ उद्देश्यों की ओर प्रवृत्त करती है। इस प्रक्रिया में शिक्षक और अधिगमकर्ता में अन्तःप्रक्रिया होती है।
अनुदेशन भी एक प्रक्रिया है जो अधिगमकर्ता को कुछ उद्देश्य की और प्रवृत्त करती है, लेकिन इसमें शिक्षण की भाँति शिक्षक और अधिगमकर्ता में परस्पर अन्तः प्रक्रिया नहीं होती । संक्षेप में, शिक्षण में अनुदेशन सम्मिलित होता है। लेकिन मात्र अनुदेशन को पूर्ण शिक्षण नहीं कहा जा सकता। शिक्षण-प्रक्रिया द्वारा ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक पक्षों का विकास संभव है, जबकि अनुदेशन प्रक्रिया में केवल ज्ञानात्मक पक्ष का विकास ही संभव है। शिक्षण और अनुदेशन प्रक्रियाओं में अधिगम सम्मिलित होता है। जहाँ ये दोनों प्रक्रियाएं होंगी वहाँ अधिगम अवश्य होगा। लेकिन सभी प्रकार के अधिगम के लिए शिक्षण और अनुदेशन आवश्यक नहीं। शिक्षण और अनुदेशन के बिना भी अधिगम संभव है। मुख्य रूप से शिक्षण और अनुदेशन का कार्य अधिगम को प्रभावित करता है। अधिगम अधिगमकर्ता से संबंधित मानसिक प्रक्रिया है तथा शिक्षण अधिगम में सहायता पहुँचाने वाली बाह्य प्रक्रिया है। दूसरे शब्दों में क्रियाओं और अनुभवों द्वारा व्यवहार में परिवर्तन आने को ही अधिगम कहते हैं तथा शिक्षण और अनुदेशन की प्रक्रिया ये परिवर्तन लाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
शिक्षण और अधिगम का सम्बन्ध
शिक्षण का प्रमुख कार्य अधिगम पर केन्द्रित होता है। दूसरे शब्दों में, जब शिक्षण होगा तभी अधिगम होगा। अतः शिक्षण-प्रत्यय अधिगम के बिना कभी पूर्ण नहीं कहा जा सकता।
लेकिन बी. ओ. स्मिथ के विचार बिल्कुल इसके विपरीत हैं। उनके अनुसार यह आवश्यक नहीं है कि शिक्षण द्वारा अधिगम उत्पन्न हो।
स्मिथ के अनुसार शिक्षण क्रियायों द्वारा अधिगम उत्पन्न करने की इच्छा की जाती है। उनके अनुसार शिक्षण अलग है और अधिगम अलग है।
वुडवर्थ के अनुसार अधिगम की परिभाषा इस प्रकार है, "नया ज्ञान और नयी अनुक्रियाओं को अर्जित करने की प्रक्रिया को सीखना ही अधिगम की प्रक्रिया कहलाता है।"
स्किनर ने भी अधिगम के विकासात्मक प्रवृत्ति के बारे में कहा है, "अधिगम व्यवहार में उत्तरोतर सामंजस्य की प्रक्रिया है।
जे. पी. गिलफोर्ड के अनुसार, "व्यवहार के कारण परिवर्तन ही अधिगम है।"
क्रो एवं क्रो के अनुसार, "अधिगम आदतों, ज्ञान एवं अभिवृत्तियों को अर्जित करना है।
इन परिभाषाओं के आधार पर अधिगम की प्रकृति निम्नलिखित है -
1. व्यवहार परिवर्तन ही अधिगम है।
2. अधिगम सकारात्मक और नकारात्मक होता है।
3. अधिगम की प्रक्रिया निरन्तर प्रक्रिया है।
4. अधिगम अभिवृद्धि तथा समस्या समाधान की प्रक्रिया है।
5. अधिगम सामाजिक एवं विवेकपूर्ण क्रिया है
6. अधिगम एक सक्रिय प्रक्रिया है।
एन. एल. गेज के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान में शिक्षण केन्द्रीय बिन्दू होना चाहिए लेकिन केन्द्रीय बिन्दू अधिगम को ही माना जाता है कक्षा की समस्याओं के समाधान के लिए केवल अधिगम के तत्व या नियमों का अध्ययन करके ही समाधान नहीं ढूंढ़ा जा सकता।
बर्टन और गेज के अनुसार -अधिगम के सिद्धांत स्वयं में पूर्ण भी नहीं हैं।
क्रोनबैक के अनुसार अधिगम के सात तत्व हैं और इन्हीं तत्त्वों के आधार पर शिक्षण के सिद्धांतों को निर्धारित किया जाता है। ये तत्त्व हैं-1. स्थिति, 2. व्यक्तिगत विशेषतायें 3. लक्ष्य 4. व्याख्या 5. कार्य 6. परिणाम 7. विरोध पर प्रतिक्रिया। यदि अधिगमकर्ता अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं करता तो वह उस क्रिया या शिक्षण का विरोध करेगा, इससे उसके मन में तनाव होगा। अतः शिक्षक उनकी कठिनाइयों को समझने और उन्हें सुलझाने में उनकी मदद कर सकता है।
इसी प्रकार ब्लूम के उद्देश्य शिक्षण और अधिगम में सम्बन्ध स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ब्लूम के उद्देश्यों और बिगे के शिक्षण स्तरों का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है। ये शिक्षण स्तर हैं-स्मृति स्तर, बोध-स्तर और विमर्शपूर्ण स्तर।
ब्लूम द्वारा बताये गए उद्देश्य है-ज्ञान का उद्देश्य, बुद्धि का उद्देश्य (Comprehension), प्रयोग (Application), विश्लेषण (Analysis), संश्लेषण (Synthesis) और मूल्यांकन।
शिक्षण और अधिगम , दोनों का ही लक्ष्य बालक के व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन लाकर उसके व्यक्तित्त्व का सर्वांगीण विकास करना होता है। इन दोनों प्रतिक्रियाओं को अलग-अलग रखना अनुचित होगा शिक्षण की प्रक्रिया इस प्रकार से आयोजित की जाए कि जिससे अधिक से अधिक अधिगम हो सके। शिक्षण-अधिगम के सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए उपागम-प्रणाली की सहायता भी ली जा सकती है। मैक्डानल्ड ने भी इस सम्बन्ध में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को चार उप-क्रियाओं में बाँट कर शिक्षण और अधिगम को सम्बन्धित करने का प्रयास किया है। ये उप-क्रियाएँ हैं-(i) पाठ्यक्रम (ii) शिक्षण (iii) अनुदेशन (iv)अधिगम।
शिक्षण और अधिगम में अंतर
विद्यार्थी के विकास के लिए शिक्षण तथा अधिगम क्रियाओं में सम्बन्ध का होना अति आवश्यक है। शिक्षण और अधिगम की प्रक्रियाओं में हम विभेदीकरण भी कर सकते हैं जैसे-
(i)शिक्षण प्रक्रिया को एक साधन माना गया है जबकि अधिगम को इस प्रक्रिया का परिणाम माना गया है।
(ii) अधिगम सफलता का संकेत अर्थात् उपलब्धि का चिह्न है। शिक्षण क्रियाओं का समूह है जोकि उपलब्धि की ओर लक्षित होती है।
(iii) सीखने को व्यक्तिगत माना गया है जबकि शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है।
(iv) शिक्षण में कुछ ज्ञान प्रदान किया जाता है, जबकि अधिगम में ज्ञान हासिल किया जाता है अर्थात् कुछ अर्जित किया जाता है।
शिक्षण और अधिगम के संबंध में उपरोक्त बिंदुओं को हमने विस्तार से जाना, आशा है यह लेख आप सभी पाठकों के लिए उपयोगी होगा।
यह भी जानें...
0 टिप्पणियाँ