Aupcharik shiksha-anaupcharik shiksha-niraupcharik shiksha

औपचारिक शिक्षा (Formal Education),अनौपचारिक शिक्षा  (Informal Education) और निरौचारिक शिक्षा (Non-Formal Education) ये तीनों शिक्षा के मुख्य प्रकार हैं। इसके अलावा शिक्षा के और भी प्रकार हैं।

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लेकिन यहाँ हम केवल इन्हीं तीन शिक्षा के प्रकारों यथा औपचारिक शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा, निरौपचारिक शिक्षा और इनकी विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।

शिक्षा के प्रकार

शिक्षा को वर्गीकृत करने का आधार अलग-अलग है। ये निम्नलिखित हैं- (1) औपचारिक शिक्षा (2) अनौपचारिक शिक्षा (3)निरौपचारिक शिक्षा (4) प्रत्यक्ष शिक्षा (5) अप्रत्यक्ष शिक्षा (6) सामान्य शिक्षा (7) विशिष्ट शिक्षा (8)वैयक्तिक शिक्षा (9) सामूहिक शिक्षा। इन सभी प्रकारों का अपना-अपना विशेष महत्व है और ये विभिन्न दृष्टिकोण से प्रासंगिक हैं। ये सभी एक दूसरे के पूरक हैं। सबसे पहले हम औपचारिक शिक्षा के बारे में जानेंगे…

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औपचारिक शिक्षा

औपचारिक शिक्षा : शिक्षा का यह प्रकार आधुनिक युग में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। औपचारिक शिक्षा नियमित और योजनाबद्ध रूप से दी जाती है, इसलिए इस शिक्षा को नियमित या नियोजित शिक्षा भी कहा जाता है। इसमें सबकुछ, जैसे क्या पढ़ाना है, कितना पढ़ाना है, कैसे पढ़ाना है, पूर्व-विचारित होता है। इसके उद्देश्य, पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तकें, शिक्षण विधियां, स्थान पूर्वनिर्धारित और निश्चित होते हैं। यह शिक्षा निश्चित समय, शिक्षा संस्थान और समय सारणी के अनुसार निश्चित शिक्षकों द्वारा दी जाती है।


औपचारिक शिक्षा अधिगमकर्ता के ज्ञान को सुव्यवस्थित और संगठित करती है, उनके चरित्र को श्रेष्ठ बनाती है और उन्हें किसी उद्यम या व्यवसाय के लिए प्रशिक्षित करती है। इस तरह यह शिक्षा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। श्री जे. मोहिते के अनुसार "इस प्रकार की शिक्षा की योजना सोच समझकर और जानबूझकर बनाई जाती है। इसके पाठ्यक्रम की रूपरेखा पहले से ही तैयार कर ली जाती है और इसके उद्देश्य भी पहले से ही निश्चित कर लिए जाते हैं।" यह विशिष्ट ज्ञान अर्जित करने के लिए उत्तम शिक्षा व्यवस्था है, जैसे मान लीजिये किसी को इलेक्ट्रीशियन बनना है तो उसे इसी विषय का औपचारिक ज्ञान लेना पड़ेगा, सामान्य ज्ञान से वह इलेक्ट्रीशियन नहीं बन पाएगा।

 

औपचारिक शिक्षा के सबसे बड़े और मुख्य साधन विद्यालय हैं। इसके अलावा पुस्तकालय, संग्रहालय और पुस्तकें आदि भी औपचारिक शिक्षा के साधन हैं। इस तरह की शिक्षा से विद्यार्थी को एक निश्चित समय में व्यवस्थित रूप से शिक्षा प्राप्त होती है तथा समाज और राष्ट्र की आवश्यकताएं पूरी होती हैं। लाभ के साथ-साथ इसके कुछ दोष भी हैं जैसे यह शिक्षा अप्राकृतिक होती है, इसमें विद्यार्थियों को निश्चित पाठ्यक्रम, समय-सारणी और कठोर अनुशासन में रख कर दिया जाता है, जिससे उनका स्वाभाविक विकास बाधित होता है और यह केवल रटने वाला छात्र बनकर रह जाता है। मोहन्ते के अनुसार, "औपचारिक शिक्षा कठोर, कृत्रिम तथा जीवन के अनुभवों से कटी हुई होती है।" लेकिन अब आधुनिक शिक्षा नीतियों में औपचारिक शिक्षा को भी विद्यालय के बाहरी वातारण और जीवन के अनुभवों से जोड़ने पर विशेष जोर दिया जा रहा है इसे क्रियान्वित करने के लिए पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों, गृहकार्य, असाइनमेंट, प्रोजेक्ट और शिक्षण विधियों को भी इन नीतियों के अनुसार तैयार किया गया है।



औपचारिक शिक्षा के प्रमुख साधन:

औपचारिक शिक्षा । अनौपचारिक शिक्षा । निरौपचारिक शिक्षा

(१)स्कूल (२)कॉलेज (३)विश्वविद्यालय (४)धार्मिक संस्थाएं (५)पुस्तकालय इत्यादि हैं।

औपचारिक शिक्षा की विशेषताएं:

१. औपचारिक शिक्षा नियमित, योजनाबद्ध और सुव्यवस्थित ढंग से दी जाती है।

२.यह कठोर और अप्राकृतिक होती हैं इनका जीवन के अनुभवों से वास्ता नहीं होता है।

३.यह मुख्यतः कृत्रिम वातावरण यथा स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय इत्यादि में दी जाती है।

४. यह पूर्व निर्धारित लक्ष्यों और उद्देश्यों के मद्देनजर दी जाती है।

५.इसमें परीक्षा या मूल्यांकन का महत्वपूर्ण स्थान होता है।

६. यह कठिन है क्योंकि इसमें अधिक मेहनत करनी पड़ती है।

७. यह शिक्षा तब तक चलती है जबतक विद्यार्थी औपचारिक शिक्षण संस्थानों में जाता रहता है।

८. साधारणतया औपचारिक शिक्षा पूर्णकालिक शिक्षा है।


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नौपचारिक शिक्षा

औपचारिक शिक्षा । अनौपचारिक शिक्षा । निरौपचारिक शिक्षा

अनौपचारिक शिक्षा : इस प्रकार की शिक्षा में किसी चीज की निश्चितता नहीं होती है। इसलिए इसे अनियमित, आकस्मिक और अनियोजित शिक्षा भी कहा जाता है। अनौपचारिक शिक्षा आकस्मिक, स्वाभाविक या प्राकृतिक रूप से होती है। यह शिक्षा पूर्वविचारित नहीं होती है। बालक इसे अपने परिवार के अन्दर और आस-पड़ोस, खेल के मैदान, पार्क आदि जैसे खुले वातावरण में सार्वजनिक जगहों पर, उठते-बैठते, खेलते-कूदले, बात-चीत करके प्राकृतिक रूप से स्वतंत्रतापूर्वक ग्रहण करता है। इसके लक्ष्य और उद्देश्य निश्चित नहीं होते हैं और न ही कोई निश्चित पाठ्यक्रम,पाठ्यपुस्तक, शिक्षण विधि या समय-सारणी होती है। यह शिक्षा जन्म से लेकर मृत्यु तक निर्बाध रूप से सतत चलती रहती है। इस प्रकार की शिक्षा में पूर्वनिर्धारित ज्ञान नहीं होते बल्कि बालक जितने लोगों के सम्पर्क में आता है और उनसे कुछ न कुछ सीखता है वे सभी अधिगम के स्रोत होते हैं। यह शिक्षा जीवन के प्रत्येक अनुभव से प्राप्त की जाती है।

इसे आकस्मिक शिक्षा इसलिए कहा जाता है क्योंकि बालक इसे अचानक ही ग्रहण कर लेता है। इस शिक्षा को अनियमित इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे बच्चा अनियमित रूप से ग्रहण करता है। इसे वह कभी भी  कहीं भी प्राप्त कर सकता है। यह शिक्षा बालक को व्यावहारिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने के लिए तैयार करती है, उनके चरित्र के विकास में सहायता करती है और उन्हें सभ्यता व संस्कृति से परिचित कराती है। इस शिक्षा का दोष यही है कि इस प्रकार की शिक्षा अव्यवस्थित व अनिश्चित होती है, इसके द्वारा किसी क्षेत्र विशेष में योग्यता प्राप्त नहीं की जा सकती अर्थात् इसके द्वारा विशिष्ट ज्ञान नहीं प्राप्त किया जा सकता।

अनौपचारिक शिक्षा के प्रमुख साधन:

परिवार, समुदाय, मित्र-मंडली, धर्म, समाज, खेल का मैदान, प्रकृति इत्यादि।

अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएं: 

१. अनौपचारिक शिक्षा अनियमित, अव्यवस्थित, अनिश्चित एवं आकस्मिक होती है। 

२. इसे व्यक्ति परिवार, समुदाय, पड़ोस, समाज आदि से प्राप्त करता है।

३. यह सरल, स्वाभाविक जीवन से सम्बन्धित होती है।

४. इसके उद्देश्य पूर्व निर्धारित नहीं होते हैं और पाठ्यक्रम भी निश्चित नहीं होता है और इनको प्राप्त करने का कोई निश्चित स्थान नहीं होता है और निश्चित अवधि भी नहीं होती है।

५. इसमें व्यक्ति को अपने अनुभवों से सीखने में मदद मिलती है। 

६. इसमें किसी प्रकार की परीक्षा या मूल्यांकन की आवश्यकता नहीं होती।

७. यह शिक्षा आजीवन चलती रहती है।

८. यह व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में समन्वय स्थापित करती है।

९. यह शिक्षा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक है।

१०. यह व्यक्ति के बाहरी वातावरण से प्राप्त होती है लेकिन आंतरिक गुणों के विकास को प्रेरित करती है।

शिक्षण किसे कहते हैं?

निरौपचारिक शिक्षा
Aupcharik shiksha-anaupcharik shiksha-niraupcharik shiksha

निरौपचारिक शिक्षा एक नवीनतम शिक्षा का प्रकार है। यह औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के मध्य का रास्ता है। इसको औपचारिक शिक्षा एवं अनौपचारिक शिक्षा में व्याप्त दोष को देखते हुए शुरू की गई है। औपचारिक शिक्षा यदि कठोर, नियमित और नियोजित है तो अनौपचारिक शिक्षा अनियमित, अनियोजित और  अव्यवस्थित है। इसलिए इन दोनों के मध्य मार्ग को निरौपचारिक शिक्षा के रूप में अपनाया गया।

जे. मोहन्ते के अनुसार "निरौपचारिक शिक्षा एक सुविधाजनक स्थान और समय पर छात्रों की ग्रहण क्षमता और मनोवैज्ञानिक वृद्धि को ध्यान में रखकर दी जाती है।" इस शिक्षा पद्धति में कुछ चीजें नियन्त्रित  होती हैं तो कुछ अनियन्त्रित। उदाहरण के लिए पाठ्यक्रम और परीक्षा जैसे विषयों पर नियन्त्रण होता है, जबकि उम्र, स्थान, शिक्षण विधि आदि विषयों को नियन्त्रणमुक्त रखा जाता है। विद्यार्थी के पास जो सुविधाजनक समय है जो भी स्थान उसके लिए उपयुक्त है तथा जो भी विषय सामग्री उसकी क्षमता के अनुसार है, उसकी उसको शिक्षा प्रदान की जाती है। यह शिक्षा न तो औपचारिक शिक्षा की तरह विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय की सीमा में दी जाती है तथा न ही अनौपचारिक शिक्षा की भांति आकस्मिक रूप से चलती रहती है। इसमें विद्यार्थी की आयु-समूह का कोई ध्यान नहीं दिया जाता, विद्यार्थी किसी भी आयु समूह का हो, शिक्षा ग्रहण कर सकता है। यह इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इस शिक्षा के माध्यम से विशिष्ट विषय का ज्ञान प्राप्त करना सम्भव है जबकि अनौपचारिक शिक्षा में नहीं।

अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के अनुसार "निरौपचारिक शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है और यह उन लोगों को अनौपचारिक तथा निरौपचारिक शिक्षा पर जोर देती है, जिन्होंने किसी निश्चित अवस्था में शिक्षा प्राप्त करना छोड़ दिया था और अब वे उसकी आवश्यकता का अनुभव करने लगे हैं।"

निरौपचारिक शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाएं :

(१) अंशकालिक विद्यालय (२) खुले स्कूल एवं विश्वविद्यालय (जैसे-IGNOU, NALANDA OPEN UNIVERSITY, NIOS आदि) (३) चर्च  (४) पत्राचार  (५) कार्यशालाएं (६) क्लब (७) समाज कल्याण संगठन (८) सांध्य विद्यालय या महाविद्यालय इत्यादि।

निरौपचारिक शिक्षा के शिक्षण साधन:

(१) समाचार पत्र  (२) कंप्यूटर (३) टेलीविजन (४) भाषण (५) भाषण प्रलेख  (६) प्रदर्शनी  (७) शैक्षिक भ्रमण   (८) चर्चा  (९) गोष्ठियां (१०) मुद्रित सामग्री (११) अभिक्रमित पाठ्य सामग्री (१२) सम्मेलन आदि।

नोट-वर्तमान समय में कंप्यूटर, टेलीविजन आदि को हर प्रकार की शिक्षा में शिक्षण के महत्वपूर्ण साधन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।

निरौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था करने वाली संस्था:

(१) केन्द्रीय एवं राज्य सरकारें (२) राज्य सरकार के विभिन्न विभाग (३) स्वैच्छिक संगठन (४) समाज सेवी संस्थाएं 

निरौपचारिक शिक्षा की विशेषताएं: 

१. यह शिक्षा विद्यालय से अलग  बाह्य वातावरण में दी जाती है।

२. इस शिक्षा में आयु सीमा नहीं होती है। इसे किशोर, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध आदि सभी प्राप्त कर सकते हैं।

३. यह औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के बीच का रास्ता है।

४.यह अनौपचारिक शिक्षा से भी अलग है क्योंकि अनौपचारिक शिक्षा योजनबद्ध नहीं होती है जबकि निरौपचारिक शिक्षा में योजना भी बनाई जाती है और इसमें ज्ञान को व्यवस्थित रूप से प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।

५. निरौपचारिक शिक्षा का कोई एक निश्चित समय-सीमा नहीं है, यह आजीवन चल सकती है। 

६. यह शिक्षा उन लोगों के लिए वरदान है जिन्होंने किसी कारणवश शिक्षा ग्रहण करना बंद कर दिया था, लेकिन बाद में जीवन के किसी अवस्था में उन्हें अनुभव होने लगता है उनको शिक्षा की जरूरत है। यह उन पेशेवरों के लिए भी लाभप्रद है जो अपने कार्य से संबंधित विशिष्ट ज्ञान अर्जित करना चाहते हैं। ऐसे लोगों को उनके सुविधाजनक समय तथा स्थान पर इच्छित विषयों व कार्यों की जानकारी प्रदान करती है। 

(७) निरौपचारिक शिक्षा अंशकालिक है

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निरौपचारिक शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व:

(१) औपचारिक शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा की कमियों को दूर करना: यह शिक्षा औपचारिक शिक्षा एवं अनौपचारिक शिक्षा की कमियों को दूर करती है। निरौपचारिक शिक्षा में दोनों शिक्षाओं का समन्वय है।


(२) शिक्षा एक मूलभूत मानवाधिकार: हमारे संविधान में शिक्षा को एक मूलभूत अधिकार के रूप में रखा गया है। इसलिए प्रत्येक भारतीय नागरिक को शिक्षित करने के लिए औपचारिक शिक्षा से सभी को शिक्षित करना कई परिस्थितियों में कठिन है इसलिए निरौपचारिक शिक्षा को अपनाया गया ताकि शिक्षा सभी नागरिकों को दी जा सके।


(३) प्रजातन्त्र की सफलता: प्रजातन्त्र की सफलता आदर्श नागरिकों पर निर्भर करती है और व्यक्ति को आदर्श नागरिक बनाने का कार्य शिक्षा ही करती है। जो लोग किसी कारणवश शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते उनको उचित शैक्षिक सुविधाएं प्रदान करने का कार्य निरौपचारिक शिक्षा ही करती है। 


(४) व्यावहारिक ज्ञान देने हेतु: शिक्षा का अर्थ व्यक्ति को केवल विभिन्न विषयों का सैद्धांतिक और पुस्तकीय ज्ञान प्रदान करना ही नहीं है बल्कि उन्हें ऐसा ज्ञान भी प्रदान करना है जो उसके वास्तविक जीवन के लिए उपयोगी हो, जिससे वह अपने कार्य को अच्छे से कर सके और उनको व्यवसाय के कई मौके मिल सकें। निरौपचारिक शिक्षा इस दिशा में एक सफल प्रयास है। 


(५) तीव्र जनसंख्या वृद्धि: निरौपचारिक शिक्षा तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक सिद्ध हो सकती है।


(६) दूरस्थ लोगों के लिए शिक्षा: निरौपचारिक शिक्षा उन लोगों के लिए अतिमहत्वपूर्ण है जो दुर्गम और बेहद आंतरिक स्थानों पर निवास करते हैं जहाँ औपचारिक शिक्षा की पहुँच बहुत दुर्लभ है।


(७) शिक्षा की आवश्यकता देश के सभी नागरिकों के लिए आवश्यक: निरौपचारिक शिक्षा सभी शिक्षित और अशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता है। जहाँ शिक्षित व्यक्तियों को और अधिक ज्ञान हासिल करने के लिए इसकी जरूरत है वहीं अशिक्षितों को शिक्षित  होने के लिए इसकी जरूरत है। इस शिक्षा का योगदान साक्षरता उन्मूलन में भी है।


•आजकल शिक्षा पद्धति में इन सभी तरह की शिक्षाओं का उपयोग किया जा रहा है और इसका लाभ प्रत्येक व्यक्ति को मिल रहा है, इसलिए दिन प्रतिदिन इनकी भूमिका बढ़ती जा रही है।


आशा करता हूँ आप सभी औपचारिक शिक्षा (Formal education), अनौपचारिक शिक्षा (Informal education), तथा निरौपचारिक शिक्षा (Non-Formal education) को समझ चुके होंगे।


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